Rana Sanga Biography in Hindi | राणा सांगा का जीवन परिचय

Rana Sanga Biography in Hindi: महाराणा संग्राम सिंह जिन्हे राणा सांगा के नाम से भी जाना जाता है राणा कुम्भा के बाद मेवाड़ के सबसे प्रसिद्ध राजा हुए। इन्हे अपने शक्ति के दम पर मेवाड़ की सीमाओं का विस्तार किया तथा सभी राजपूत राजाओं को संगठित किया। वह एक महान योद्धा तथा शासक थे जो अपनी वीरता और उदारता के लिए प्रसिद्ध थे। इस आर्टिकल के माध्यम से आज him इसी वीर पुरुष Rana Sanga Biography in Hindi – राणा सांगा का जीवन परिचय विस्तार से बातएंगे

Rana Sanga (Sangram Singh)Biography in Hindi – राणा सांगा का जीवन परिचय

राणा सांगा का वास्तविक नाम संग्राम सिंह था। राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1484 को चित्तौड़गढ़ में हुआ था। राणा सांग के पिता का नाम राणा रायमल तथा माता का नाम श्रृंगारबाई था। राणा सांगा के दो भाई कुंवर पृथ्वीराज तथा कुंवर जयमल थे। इनकी एक बहन भी थी जिसका नाम आनंदीबाई था।

Short Biography of Rana Sanga (Sangram Singh) In Hindi

नाम राणा सांगा 
वास्तविक नाम संग्राम सिंह 
जन्म तिथि (Rana Sanga Jayanti)12 अप्रैल 1484
निधन (Rana Sanga Punyatithi)30 जनवरी 1528 
मृत्यु के समय आयु 44 वर्ष 
धर्म (Rana Sanga Religion)सनातन 
घराना सिसोदिया राजपूत 
दादा का नाम (Rana Sanga Grandfather Name)राणा कुम्भा 
पिता का नाम (Rana Sanga Father Name)राणा रायमल 
माता का नाम (Rana Sanga Mother Name)श्रृंगारबाई 
पत्नी का नाम (Rana Sanga Wife Name)कर्णावती 
पुत्र का नाम (Rana Sanga Son)भोजराज, उदय सिंह द्वितीय, रतन सिंह द्वितीय और विक्रमादित्य सिंह 
पौत्र का नाम (Rana Sanga Grand Son)महाराणा प्रताप, जगमाल, शक्ति सिंह, सागर सिंह

राणा सांगा की पत्नी

राणा सांगा की एक पत्नी थी। और उनकी पत्नी का नाम रानी कर्णावती था। राणा सांग के 4 पुत्र थे।

  • भोजराज
  • उदय सिंह द्वितीय
  • रतन सिंह द्वितीय
  • विक्रमादित्य सिंह

राणा सांगा का इतिहास

साल 1500 ई की बात है जब दिल्ली पर सल्तनत-ऐ-हिन्द का परचम लहरा रहा था जिसका सुल्तान था इब्राहिम लोदी। और इधर गुजरात में बादशाह बहादुरशाह की अपनी सल्तनत कायम हो चुकी थी। इन्ही राजाओं से गुज़रते हुए बीच में पड़ता था मेवाड़। मेवाड़ हमेशा से दिल्ली की आँख में चुभता आया था। क्योंकि दिल्ली के सुल्तान मेवाड़ के महायोद्धा राणा हम्मीर सिंह के शौर्य की आग में कई बार झुलस चुके थे।

इस समय मेवाड़ में राणा सांगा के पिता रायमल का राज था। एक दिन की बात है रायमल के तीनो पुत्र अपने गुरु के आश्रम जाते हैं जहाँ उनके गुरु ने संग्राम सिंह के हाँथ को देखा और कहा –

“तेरी तलवार से सल्तनते कांपेंगी जहाँ भी तेरा ध्वज लहराएगा आस-पास कोई शत्रु फटकेगा भी नहीं और बहुत ही जल्द तू मेवाड़ का सम्राट बनेगा”

गुरु की बात सुन बड़े भाई कुंवर पृथ्वीराज ने संग्राम सिंह से कहा यह मात्र बातें हैं सम्राट तो बड़ा ही लड़का बनेगा। इस बात पर कुंवर संग्राम ने कहा भाई सा जिसकी ताकत उसकी सत्ता। संग्राम सिंह के ऐसे वचनो को सुनकर दोनों भाइयों का आपस में झगड़ा छिड़ गया और इसी लड़ाई में पृथ्वीराज ने बालक संग्राम सिंह की एक आँख फोड़ दी। इस बात से नाराज़ संग्राम सिंह रात के अँधेरे में मेवाड़ से अजमेर निकल गए जहाँ करमचंद पवार ने उन्हें आश्रय दिया तथा वहां रह कर कई युद्ध कलाओं में महारत हांसिल की।

तपस्या की आग में तप कर बालक संग्राम सिंह सोना बन रहा था। बालक संग्राम सिंह अब युवा हो चला था। खून में गर्मी, जिगरे में फौलाद और ऊँचे तेवर होना लाजमी था क्योंकि वीर राणा कुम्भा के ही रक्त बीज उनमे थे। यही समय था जब संग्राम सिंह ने मेवाड़ धरा की सियासत को पलट कर रख दिया। इस समय राणा रायमल के दोनों पुत्रों का स्वर्गवास हो गया था और सरदारों ने राणा संग्राम सिंह को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करते हुए 1509 में राज्याभिषेक किया।

यह वही संग्राम सिंह है जिन्हे दुनिया राणा सांगा के नाम से जानती है। राणा ने सतलुज, बयाना, मालवा, भारतपुर, ग्वालियर तथा उत्तर गुजरात में एक छत्र शासन स्थापित किया। राणा सांगा के एक हाँथ, एक आँख नहीं थे और शरीर पर 80 घाव थे फिर भी खुले शेर की तरह भयानक युद्धों का नेतृत्व खुद करते थे।

राणा सांगा का गौरवान्वित इतिहास

Rana Sanga Biography
Sangram Singh Biography In Hindi

1509 में जब राणा सांगा ने राजगद्दी संभाली तो उन्होंने मेवाड़ को मजबूत करने के लिए राजपूताने की बड़ी बड़ी रियासतों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने शुरू कर दिए। चारो तरफ से अपनी सत्ता मजबूत की और फिर भयानक युद्ध का शंखनाद किया। राणा सांगा की निगाहे तो शुरू से ही दिल्ली सल्तनत पर टिकी थीं।

Battle of Khatauli – खतौली का युद्ध

राणा सांगा की निगाहे तो शुरू से ही दिल्ली सल्तनत पर टिकी थीं। और इसी के चलते राणा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई राज्यों पर अपना ध्वज लहरा दिया। राणा की बढ़ती इस ताकत से सब हैरान थे। इसी बढ़ती ताकत का जवाब देने वर्ष 1517 ई में इब्राहिम लोदी ने एक विशाल सेना के साथ मेवाड़ पर चढ़ाई कर दी।

इस युद्ध में इब्राहिम लोदी की सेना पराजित हुई तथा राणा ने अपना एक हाँथ खो दिया। अपनी इस हार का बदला लेने के लिए इब्राहिल लोदी ने सेनापति मियां माखन के नेतृत्व में सन 1518 में एक सेना भेजी किन्तु सांगा ने धौलपुर के पास बाड़ी के युद्ध में फिर उसे पराजित किया। दिल्ली के सुल्तान को दो बार पराजित करने के पश्चात् राणा सांगा की समस्त राजपूताने में धाक कायम हो गयी और सांगा को हिन्दुपथ की उपाधि से नवाजा गया।

मालवा पर विजय

साल 1518 ई में मालवा के शासक महमूद खिलजी तथा गुजरात की मुस्लिम सेना ने संयुक्त रूप से गागरोन पर धावा बोल दिया जिसके कारण महमूद खिलजी और राणा सांगा के बीच गागरोन का युद्ध हुआ। इस युद्ध में सांगा ने महमूद के सभी सरदारों का मार कर महमूद खिलजी को चित्तौड़ में 5 महीने तक बंदी बना कर रखा था।

इतिहास करवट बदल रहा था सन 1526 ई में काबुल के बादशाह बाबर तथा दिल्ली के सुल्तान इब्राहिल लोदी के बीच घनघोर युद्ध छिड़ा जिसमे बाबर ने लोदी को पराजित कर मार डाला। दिल्ली पर मुग़लिया सल्तनत कायम हो चुकी थी और इधर मेवाड़ एक बहुत बड़ा हिन्दू साम्राज्य बन चूका था। जिसका विस्तार दिल्ली को छूटा था।

Battle of Bayana – बयाना का युद्ध

बाबर को यह पता था की जब तक भारत में राणा सांगा जैसा वीर योद्धा है तब तक वह पुरे भारत पर शासन नहीं कर सकता। इसी के तहत बाबर ने फतेहपुर सिकरी में अपनी विशाल सेना के साथ डेरा डाला और बयाना दुर्ग पर अधिकार कर लिया। बयाना का सरदार भागता हुआ मेवाड़ी दरबार पहुंचा और सारी सूचना दी। क्रोध की अग्नि राणा के सीने में धधक चुकी थी। राणा ने महायुद्ध का ऐलान करते हुए सम्पूर्ण राजपूताने में पाती परवन का सन्देश भिजवाया जिसके चलते सभी छत्रिय ताकते राणा के एक छत्र के नीचे महासेना का रूप धारण कर चुकी थीं।

भयानक शंखनाद के साथ युद्ध का ऐलान हुआ। मारवाड़ के राजा मालदेव राठौर ने युद्ध की रणनीति बनाई। बूंदी से बागड़ उदय सिंह, अजमेर के आमेर पृथ्वीराज, बीकानेर के कल्याणमल और ग्वालियर जैसी बड़ी-बड़ी रियासतों के महाराजों तथा अफगानी सरदारों ने राणा सांगा के नेतृत्व में 16 फ़रवरी 1526 को बाबर की सेना को पराजित कर बयाना के दुर्ग पर फिर से केसरिया ध्वज लहरा दिया।

Battle of Khanwa – खानवा का युद्ध

बयाना का युद्ध भारत में बाबर की पहली हार थी। पर बाबर भी कोई छोटा मोटा बादशाह नहीं था। इतिहास बताता है की बाबर की नेतृत्व शक्ति गजब की थी। राणा के द्वारा इस भयानक युद्ध के पश्चात् बाबर की सेना ने दोबारा रणभूमि में जाने से मना कर दिया और काबुल जाने की जिद पर अड़ गयी। इसके चलते बाबर ने अपनी सेना को कई तरह के लालच दिया। जब बात न बनी तो बाबर ने इस युद्ध को धर्म युद्ध घोषित किया और जिहाद का नारा दिया।

आखिरकार 17 मार्च 1527 को वह दिन आ गया जब खानवा के युद्ध में फिर से राणा सांगा और बाबर आमने-सामने थे। बाबर ने पानीपत की तरह बाहरी प्रतिरक्षा के रूप में अनेक गाड़ियों को आपस में बाधा और दोहरी सुरक्षा के लिए खाई खुदवा दी। प्रतिरक्षा में बन्दूकचियों के गोली चलाने और पहियादार तिपाईयों के पीछे-पीछे बढ़ने के लिए खली स्थान छुड़वा दिए।

बाबर के अनुसार खानवा का युद्ध बहुत ही भयानक था। राणा सांगा की फ़ौज 2 लाख से ऊपर थी और इनमे 10000 अफगान सवार थे। सांगा ने बाबर के दाएं बाजू पर भयानक हमला किया और उसे लगभग काट ही डाला था। पर मुग़ल तोपों ने राणा की सेना का भारी संघार किया और धीरे-धीरे पीछे धकेल दिया।

इसी समय बाबर ने अपने केंद्र भाग के सैनिकों को, जो अपने तिपाईयों के पीछे पनाह लिए हुए थे, आक्रमण का आदेश दिया। जंजीर में बंधी गाड़ियों के पीछे से तोपखाना भी बाहर आ गया। राणा सांगा की फ़ौज चारों तरफ से घिर गई और भयंकर मार-काट के बाद पराजित हो गई।

युद्ध के दौरान राणा अत्यंत घायल हो चुके थे। जिसके चलते तुरंत झाला अज्जा ने राणा का राजचिन्ह धारण किया और रणभूमि से उन्हें बाहर निकाला गया।

महाराणा संग्राम सिंह
राणा सांगा का जीवन परिचय

Rana Sanga Death – राणा सांगा की मृत्यु

खानवा के युद्ध के पश्चात् राणा एक बार फिर से बाबर से टकराने की तैयारी करने लगा। पर राणा के अपने ही सरदारों ने उन्हें जहर दे दिया और 30 जनवरी 1528 को राणा सांगा का स्वर्गवास हो गया।

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अभिषेक प्रताप सिंह

अभिषेक प्रताप सिंह

राम-राम सभी को मेरा नाम अभिषेक प्रताप सिंह हैं, मैं मध्य प्रदेश का रहना वाला हूँ। हिन्दीअस्त्र पर मेरी भूमिका आप सभी तक ज्ञानवान और मजेदार आर्टिकल पहुंचाना है, ताकि आपको हर दिन नई जानकारी प्राप्त हो सके।

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